Friday, 9 January 2015



बेबस हूँ,बेबाक हूँ,बेशर्म हूँ,बिंदास हूँ,कमजोर भी हूँ 
लेकिन बस बलवान नही! 
कभी इस घर की,कभी उस घर की,कभी इस पल की,कभी उस पल की 
मेरी अपनी कोई पहचान नही! 
जिसने चाहा वहा मोड़ दिया,रूह को मेरी झकझोर दिया,अंदर तक मुझको तोड़ दिया 
मेरी इज़्ज़त थी,कोई काँच नही!
मेरे सपने,मेरे विचार,मेरी उड़ान,मेरे लिए सिर्फ़ धरती है यहाँ,मेरा कोई आसमान नही!
मेरे लिए एक लीबाज़,एक चौखट,एक वक़्त ओर फ़र्ज़ हैं
इस शब्द आज़ादी पर मेरा कोई अधिकार नही!

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