Tuesday 5 August 2014



हर कोई दौड़ रहा है
बस, दौड़ रहा है 
कोई दौलत की खातिर, 
कोई शौहरत की खातिर, 
कोई मोहब्बत की खातिर दौड़ रहा है...।
कोई दुकान के लिए 
कोई मकान के लिए 
कोई सामान के लिए दौड़ रहा है...। 
कोई नौकरी पाने के लिए 
कोई छोकरी पाने के लिए 
कोई कुर्सी पाने के लिए दौड़ रहा है...।
कोई फैशन के चक्कर में
कोई टशन के चक्कर में
कोई राशन के चक्कर में दौड़ रहा है...।
कोई शराब की चाहत में
कोई शबाब की चाहत में
कोई कबाब की चाहत में दौड़ रहा है...।
कोई जीतने की हौड़ में
कोई हराने की हौड़ में
कोई गिराने की हौड़ में दौड़ रहा है...।
कोई नोट की लालच में
कोई वोट की लालच में
कोई टिकट की लालच में दौड़ रहा है...।
कोई धर्म के नाम पर
कोई जाति के नाम पर
कोई प्रांत के नाम पर दौड़ रहा है...।
कोई नकल कर के
कोई बिना अकल के
कोई पीछे शकल के दौड़ रहा है...।
बस, दौड़ रहा है
हर कोई दौड़ रहा है.........

हमने देखा,तुमने देखा.............।
सड़क किनारे के ढाबे पर झूठे बर्तन धोता बचपन
पढ़ने लिखने की उम्र सहीपर ईटे,पत्थर ढोता बचपन......।
न खेल खिलौनो की चाहत न कुछ बनने की अभिलाषा
बस दो वक़्त की रोटी कोजूतो मे सुई चुभोता बचपन.............।
चौराहो पर फूल बेचताकभी गाड़िया चमकाता 
बस मे आइसक्रीम बेचनेदूर तलक दौड़ा जाता
कोने मे थक कर बैठा ,अपनी किस्मत पर रोता बचपन..............।
बबलू, घर-घर अखबार बांटताराजू ,चाय बनाता
मुन्नी झाड़ू पोछा करतीगुड्डू मालिक के पाव दबाता
फिर भी रोज गालिया खाता,आसू से नैन भिगोता बचपन.......।
बहुत बने कानून पर भूख न रोकी जाए
कुछ पैसो की खातिरबचपन बूढा होता जाए
ऐसी हालत देख के लगता,काश!कभी न होता बचपन.......।
हमने देखा,तुमने देखा.............।
सड़क किनारे के ढाबे पर झूठे बर्तन धोता बचपन
पढ़ने लिखने उम्र सहीपर ईटे,पत्थर ढोता बचपन......।
मेरे दो दो भारत,एक गोरा एक काला। 
एक आकाश छूने वाला ,
और दूसरा गड़बड़-घोटाला। 
एक भारत तो है ,स्वदेश की शान।
दूसरे भारत मे ,लोग बहुत हैं परेशान। 
एक भारत मे हैं,मल्टीप्लेक्स और मॉल। 
दूसरे मे झुग्गी-झोपड़ी ,और लोग हैं कंगाल।
एक भारत खाता है,ईमान की रोटी। दू
सरा चूसता है ,बोटी -बोटी। 
एक भारत है ,मजबूत व ताकतवर। 
दूसरे भारत मे,छाया है डर ही डर।
एक भारत है,मानवता का उदाहरण।
दूसरे मे आगजनी,लूटमार व अपहरण।
एक भारत का है ,अंतर्राष्ट्रीय स्तर।
दूसरे मे जीवन का,निम्नतम स्तर ।
एक भारत मे मानऔर संयम पलता है।
दूसरे भारत मे,"सब कुछ " चलता है।
एक भारत देता है,आज़ादी को सलामी।
दूसरे भारत मे,अब तक है गुलामी।

तेरी हर बात पर हम ऐतबार करते रहे
तुम हमें छलते रहे,हम तुमसे प्यार करते रहे ।
कोशिशें करते तो मंज़िल ज़रूर मिल जातीं 
मगर अफ़सोस तुम वायदे हज़ार करते रहे । 
नाम उनको भी मेरा याद तलक नहीं आया 
जिनकी हस्ती हम ख़ुद मे शुमार करते रहे । 
मुझको मालूम था तुम नहीं आओगे फिर भी 
ज़िंदा उम्मीद लिये हम इन्तिज़ार करते रहे । 
ज़िन्दगी यूँ तो गुज़र रही है पहले की तरह 
पर ज़ख़्म पिछले कुछ ज़ीस्त ख्वार करते रहे ।
ईद मुबारक़ आप को मेरे दोस्तो.!
खुशियाँ मुबारक़ सब को दोस्तो.!!
बड़े-छोटे रिश्ते-नातो को मिलाती.!
ईद इंसान को इंसान है बनाती.!!
भाईचारे अमन का पैगाम है देती.!
ज़िंदगी को नया आयाम है देती.!!
ऊँच-नीच की दीवारो को ना देखे.!
खुदा की दर सबको बराबर करदे.!!
आओ हमसब मिलकर ईद मनालें.!
भाई को अपने गले-जी से लगालें.!!


माँ सिखलादे बचपन की भाषा में तुतलाकर बात करूँ
नन्हे क़दमों से दौडू आंगन में फिर हांफहांफ कर साँस भरूं
माँ आज सजा मुझको नेहलाकर,तू फिर लगा एक काली बिंदिया
हाय लगे न तेरे लाल को तू खोल वही काजल की डिबिया
माँ आंसू अब कम ही आते है सीख लिया है जीवन जीना
पर बचपन के आँसू मीठे थे रोने को था तेरा सीना
क्या अश्रू की बूंदे मठर नैनो में ही घुल जाएँगी 
या फिर इनको प्यार मिलेगा ये तेरा आँचल पाएंगी
माँकहते है मूर्ख लोग ये बेटा अब जवान हो गया
मुझे पता है मेरी पीड़ा मेने तो बचपन को खो दिया।।


मित्रो , 
आज सुबह एक घटना घटी अजीब .
पहली बार एक अमीर पर भारी पड़ा गरीब ,
गरीब जो अपनी रेहरी हांक रहा था , 
रोटी की तलाश में इधर उधर झाँक रहा था ,
एक बड़ी गाडी वाले के आगे आ गया , 
बस यहीं वो मात खा गया ,
गाडी वाला जोर से चिल्लाया , 
पैसे के गरूर में इतराया , 
बोला "गाडी से क्या मेरी टकराएगा , 
चल हट पीछे नहीं तो मारा जाएगा" ,
रेहरी वाला पहले तो घबराया ,
किन्तु बिन बोले रह नहीं पाया ,
बोला ,हम लाचार ही तो अक्सर दबाये जाते है ,
और हमारे पैसे स्विस बैंक में छिपाए जाते है ,
हमारी मेहनत से ही आपके महल बनाये जाते है,
किन्तु हमारे झोपड़ें अक्सर तुड्वाए जाते है ,
बाबूजी आप समझदार होकर कैसी बातें करते हो ,
मुझ गरीब के संग क्यों मज़ाक करते हो ,"
जिसे मार दिया इस महंगाई से उसे तुम कैसे मार सकते हो ,
उसे तुम कैसे मार सकते हो "!!!!............"
अच्छा है कलम उठा ही नहीं रहा हूँ |
उठाके क्या करूँगा ? 
जो कुछ सताए, बयां कर दूंगा |
भ्रष्ट नेताओं के बारे में लिखूंगा,
दिल दहलाती वारदातों के बारे में लिखूंगा,
जान लेती महंगाई,खोयी हुई पुरवाई,
आतंक का आना जाना,
सरकार का नया बहाना,
बिगड़ी हुई नीयत,नष्ट हुई इंसानियत,
भूखे रोते बच्चे-बूढ़े,
कोई पत्थरदिल न मुड़े,
लुटानेवालों की एकता
और गहरी नींद में जनता,
चुबनेवाली हर बात,
कठोर लफ़्जों में बतला दूंगा,
खो दूंगा अपनी ही नींद,
और मासूम जहन को जला दूंगा |
उससे तो अच्छा है,
इस एहसास को दरवाजे खोलू ही नहीं,
थामे कलम से बोलू ही नहीं !
निकले कब के हैं हम सब अपने -अपने घरों से ,
अपनों से ही दूर हो जाने का दर्द तो है । 
वही अपने खुश है आज हमे हमारे पैरों पर खड़ा देख कर ,
उनके शान से उठते सिरों का गर्व भी तो है । 
चहकते फिरते थे यार दोस्तों के साथ 
उनका साथ छूट जाने का दुख तो है ।
पर इस नयी दुनिया में जिन चेहरो ने साथ निभाया ,
इस सफर में उनके मिल जाने का फक्र भी तो है।
कामयाबी के सफर का एक ऐसा पड़ाव ,
जिस पर आने कि खुशी तो है ।
कई मुकाम जो हम पीछे छोड़ आए है,
उन्हे बिसरा देने का गम भी तो है ।
कैसे जिये इस तन्हा जिंदगी को अपने दम पे ,
कुछ महीनो के इस सफर ने हमें सिखाया तो है ।
हर अच्छी बुरी बात को कैसे रोके खुद पर हावी होने से ,
आप लोगो ने प्यार से हमें बहुत समझाया भी तो है।
हमारी मासूमियत को जो न समझ पाये ,
उन्हे अपना समझने का छलावा तो है ।
पर अच्छे लोगो के साथ हमेशा अच्छा होता है ,
आप सब दोस्तों ने हर बार ये भरोसा दिलाया भी तो है ।
अंत में तहे दिल से शुक्रिया आप लोगो का ,
आखिर आपने अपना बनाकर गले लगाया जो है ।
दोस्तों ....सदैव आभार आप सभी के विश्वास का ,
जिसने हर बार गिरकर उठने पर हौसला बढ़ाया जो है ।