Tuesday, 5 August 2014


हमने देखा,तुमने देखा.............।
सड़क किनारे के ढाबे पर झूठे बर्तन धोता बचपन
पढ़ने लिखने की उम्र सहीपर ईटे,पत्थर ढोता बचपन......।
न खेल खिलौनो की चाहत न कुछ बनने की अभिलाषा
बस दो वक़्त की रोटी कोजूतो मे सुई चुभोता बचपन.............।
चौराहो पर फूल बेचताकभी गाड़िया चमकाता 
बस मे आइसक्रीम बेचनेदूर तलक दौड़ा जाता
कोने मे थक कर बैठा ,अपनी किस्मत पर रोता बचपन..............।
बबलू, घर-घर अखबार बांटताराजू ,चाय बनाता
मुन्नी झाड़ू पोछा करतीगुड्डू मालिक के पाव दबाता
फिर भी रोज गालिया खाता,आसू से नैन भिगोता बचपन.......।
बहुत बने कानून पर भूख न रोकी जाए
कुछ पैसो की खातिरबचपन बूढा होता जाए
ऐसी हालत देख के लगता,काश!कभी न होता बचपन.......।
हमने देखा,तुमने देखा.............।
सड़क किनारे के ढाबे पर झूठे बर्तन धोता बचपन
पढ़ने लिखने उम्र सहीपर ईटे,पत्थर ढोता बचपन......।

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