अच्छा है कलम उठा ही नहीं रहा हूँ |
उठाके क्या करूँगा ?
जो कुछ सताए, बयां कर दूंगा |
भ्रष्ट नेताओं के बारे में लिखूंगा,
दिल दहलाती वारदातों के बारे में लिखूंगा,
जान लेती महंगाई,खोयी हुई पुरवाई,
आतंक का आना जाना,
सरकार का नया बहाना,
बिगड़ी हुई नीयत,नष्ट हुई इंसानियत,
भूखे रोते बच्चे-बूढ़े,
कोई पत्थरदिल न मुड़े,
लुटानेवालों की एकता
और गहरी नींद में जनता,
चुबनेवाली हर बात,
कठोर लफ़्जों में बतला दूंगा,
खो दूंगा अपनी ही नींद,
और मासूम जहन को जला दूंगा |
उससे तो अच्छा है,
इस एहसास को दरवाजे खोलू ही नहीं,
थामे कलम से बोलू ही नहीं !
उठाके क्या करूँगा ?
जो कुछ सताए, बयां कर दूंगा |
भ्रष्ट नेताओं के बारे में लिखूंगा,
दिल दहलाती वारदातों के बारे में लिखूंगा,
जान लेती महंगाई,खोयी हुई पुरवाई,
आतंक का आना जाना,
सरकार का नया बहाना,
बिगड़ी हुई नीयत,नष्ट हुई इंसानियत,
भूखे रोते बच्चे-बूढ़े,
कोई पत्थरदिल न मुड़े,
लुटानेवालों की एकता
और गहरी नींद में जनता,
चुबनेवाली हर बात,
कठोर लफ़्जों में बतला दूंगा,
खो दूंगा अपनी ही नींद,
और मासूम जहन को जला दूंगा |
उससे तो अच्छा है,
इस एहसास को दरवाजे खोलू ही नहीं,
थामे कलम से बोलू ही नहीं !
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