Saturday 13 December 2014

Wo lamhe jo meri zindagi ke anmol pal ban gaye,
Wo lamhe jo mere gujre huye kal ban gaye,
Kaash in lamho ko mai phir se ji pata,
Wo lamhe jo meri nam aankho ke jal ban gaye.
Aankho me sapne aur dil me armaan liye,
ek safar me chal pade bina kisi ka saath liye,
Raaste me kuch naye chehro se mulakaat ho gayi,
Phir to wo aise dost bane jaise ek rishta ho umar bhar ke
liye.
Wo lamhe jo mujhe chahne wale mere dost de gaye,
Wo lamhe jo na bhula pane waale kuch log de gaye.
Is safar ki shuruaat hamne saath ki thi,
Jaan se pyare yaaro ke saath kitni saari baat ki thi,
Zindagi ke un palo ko bhi hamne saath jiya tha,
Jin palo ne khushi aur gam dono se mulakaat ki thi.
Wo lamhe jo ab laut ke nahi aa sakte,
Wo lamhe jaha hum chaah ke bhi nahi ja sakte.
Apne yaaro ke dil ki baat hum bina kahe jaan lete the,
Kaun pasand hai kisko ye thode se jhagde ke baad hum
maan lete the,
Canteen aur cafe ki partiya to roz hua karti thi,
Kubsurat ladkiyo ko call kar, na jaane kitne naam liya
karte the.
Wo lamhe jo ek dhundhali yaad ban gaye,
Wo lamhe jo ek yaadgar kitab ban gaye.
Ajeeb the ye lamhe jisme hum hase bhi aur roye bhi,
Ajeeb the ye lamhe jisme kuch paye bhi aur kuch khoye bhi.
Maa sae payara koi bol ho nhi sakta 
Maa ki mamta ka koi mol ho nhi sakta 
( sakhat raste mein bhi aasan safar lagta hai 
Ye mujhe maa ki duao ki asar lagta h 
Ek muddat sae meri maa nhi soyi jab 
Mainae ek bar kha tha ki maa mujhe dar lagta h )
Chot jab bache ko lagti h to maa roti h
Asi mohbaat kisi aur rishty mein kha hoti h 
Kuch baate bhuli hui,
kuch pal beete hue,
Har galti ka ek naya bahana,
aur fir sabki nazar me aana,
Exam ki puri raat jagna,
fir bhi sawal dekhke sar khujana,
Mauka mile to class bunk marna,
fir doston k sath canteen jana
USKI ek jhalak dekhane roj college
jana,
usko dekhte dekhte attendance bhul
jana,
Har pal hai naya sapna,
aaj jo tute fir bhi hai apna,
Ye college ke din,
In lamho me jindagi jee bhar ke
jeena,
ये दिवाली, वो दिवाली
घर में खुशियाँ, लाये दिवाली !
बम चकरी, और फूलझरी
सब से ये, बजवाये दिवाली !!
सबको पास, बुलाये दिवाली
अपनों को, मिलवाये दिवाली !
लड्डू मिशरी, और मिठाई
सबको ये, खिलवाये दिवाली !!
पटाखें छीनना, सिखाये दिवाली
पापा से डाँट, खिलाये दिवाली !
पटाखों की आवाज, सुनाये दिवाली
कान सुन्न कर जाये, हर दिवाली !!
हसते हसते, रुलाये दिवाली
घर कि याद, दिलाये दिवाली !
जैसा चाहो, वैसा बनेगी
अच्छी या, बूरी दिवाली !!
खुशियाँ मनाए, हाथ बटाए
सबसे अच्छी, उनकी दिवाली !
ताश जुआ, और जुआरी
इस से बुरी क्या, होगी दिवाली !!
सबको सन्देश, भिजवाये दिवाली
रुठे को मनाये, ये दिवाली !
शान्ति से मनाओ, ये दिवाली
वरना हाथ, जलाये दिवाली !!
रोना छोड़ मनाओ, ये दिवाली
सबको मुबारक, ये दिवाली !
आयुष्मान दुआ, पूरी की पूरी
है दिल से, इस दिवाली !!
दीवाली की रात के बाद 
भोर सबेरे, उठकर देखा
कुछ फटेहाल बच्चे 
हर दहेरी पर सजे
दीयों में बचा हुआ तेल 
निकाला रहे थे
और दीयों को करीने से
पोंछकर झोली में डाल रहे थे
यह दृश्य ऐसे ही
सिर्फ गरीबी को दर्शाता
पर मेरे मन में
एक सवाल आया
जलनशील दीपक भी
अपने पीछे कुछ अंश
जला नहीं पाया
और उसी से
किसी को खुशी का
एक उपकरण मिला
क्या मैं अपने खुशहाल
लम्हों से कुछ बचा हुआ
पल, इन के लिए
नहीं दे सकता
शायद यह एक अलग
बात है की,मैं इतना
जलनशील हूं कि
कुछ पल भी
अवशेष नहीं रख पाता
और यह बच्चे
यों ही दीये के तेल में
बीती रोशनाई का
आनंद खोजते रहेंगे
यह कैसी दिल्ली है भाई,
हमको समझ नहीं आई,
पहाड़ गंज में पहाड़ नहीं,
धुला कुआँ में कुआँ नही
,दरियागंज में दरिया नही
इन्द्रलोक में परियां नहीं,
गुलाबी बाग में गुलाबी नही
चांदनी चौक में चांदनी नही
पुरानी दिल्ली में नई सड़क,
नई दिल्ली में पुराना किला
कश्मीरी गेट में कश्मीर नही
अजमेरी गेट में अजमेर नहीं,
यह कैसी दिल्ली है भाई,
हमको समझ नहीं आई
पिता का स्नेह
प्यार का सागर ले आते
फिर चाहे कुछ न कह पाते
बिन बोले ही समझ जाते
दुःख के हर कोने में
खड़ा उनको पहले से पाया
छोटी सी उंगली पकड़कर
चलना उन्होंने सीखाया
जीवन के हर पहलु को
अपने अनुभव से बताया
हर उलझन को उन्होंने
अपना दुःख समझ सुलझाया
दूर रहकर भी हमेशा
प्यार उन्होंने हम पर बरसाया
एक छोटी सी आहट से
मेरा साया पहचाना
मेरी हर सिसकियों में
अपनी आँखों को भिगोया
आशिर्वाद उनका हमेशा हमने पाया
हर ख़ुशी को मेरी पहले उन्होंने जाना
असमंजस के पलों में
अपना विश्वाश दिलाया
उनके इस विश्वास को
अपना आत्म विश्वास बनाया
ऐसे पिता के प्यार से
बड़ा कोई प्यार न पाया
सिस्टम की खराबियों पर, कर तो रहे हो तुम चर्चा
मत भूलो इस जन्म भूमि का तुम पर बड़ा है कर्जा
संवारो इसे, निखारो इसे
अरे देश के नौजवानों तुम अब संभालो इसे
कितना भ्रष्टाचार है, गरीबी की भरमार है
बेरोजगारी की चपेट में, हर कोई लाचार है
पर देश के युवाओं तुम्हारी शिकायतों का ही पहाड़ है
यह भारत है तुम्हारा, नकारात्मकता की छाया से बचा लो इसे
हिन्दुस्तान में रहकर, इसी की मिटटी में चल कर
हिन्दी से कतराकर, जिम्मेदारी से पला झाड़कर
विदेशियों की नकल करके, स्वदेश को भुलाकर
अब बद से बदतर तो न बनाओ इसे
विदेशों की तुम करो पूजा, उनके ही गाओ गीत
चलो उनके ही नक्शेकदम पर , उनसे ही ले लो सीख
रखो अपने वतन का मान मन में,
नजरों में सबके उंचा बनाओ इसे
हर चीज मांगते हो, देना भी कभी तो चाहो
अधिकारों का ढोल पीटते हो, अपने कर्तव्य भी निभाओ
हो तुम भारत के, यही सच है न झुठलाओ इसे---------
हमारी छोटी सी नादानी,
कुछ नादान बच्चो के किस्मत की क़ुरबानी है ,
कभी उनकी मुट्ठी खुलवाकर देखना ,
किस्मत के नाम पर छाले मिलेंगे, छाले ! ,
जो उन पर हुए हर एक ज़ुल्म की निशानी है,
सबने देखा होगा,
जब हम कही घूमने निकलते हैं,
ये बच्चे कहीं रोड पर खड़े तो कहीं ,
कचड़े पर पड़े मिलते हैं.
शिक्षा, पोषण और संतुलित प्यार ,
बस यही तो हैं एक जीवित बच्चे का
मुलभुत अधिकार ,
पर मिल नहीं पता क्युंकि,
सारा माहौल कानूनी हैं,
सियासत भी तो तब आँख खोलती हैं,
जब खड़ी हो चुकी होती परेशानी हैं,
ये हमारी नादानी,
उन नादान बच्चो के किस्मत की क़ुरबानी हैं....
मैं हूँ--
कि मेरी जिन्दगी----
बँटी है कई भागों में----
कई राहों में-----
मुख्तलिफ है हर सफर----- 
और मुख्तसर है जिन्दगी।
मैं लिखता हूँ----
लिखते रहना चाहता हूँ----
मेरी रचनाएँ छपे या ना छपे----
कोई अच्छा कहे या ना कहे-----
मैं तो बस अपनी भावनाओं को----
कलम से उकेरना चाहता हूँ।
किसी रोज़ याद न कर पाऊँ तो खुदग़रज़
ना समझ
लेना दोस्तों
दरअसल छोटी सी इस उम्र मे परेशानियां बहुत
हैं...!!
: मैं भूला नहीं हूँ किसी को...
मेरे बहुत कम दोस्त है ज़माने में .........
बस थोड़ी जिंदगी उलझी पड़ी है .....
2 वक़्त की रोटी कमाने में। ..

फिर एक बार दरवाजे पर इश्क़ को खड़ा पाया बड़ी मासूमियत से दिल में जगह मांगने आया दिल ने झलाते हुए कहा कि आशियाना बहुत हुआ बसाकर तुम्हें दिल में हरबार धोखा मैंने खाया