दीवाली की रात के बाद
भोर सबेरे, उठकर देखा
कुछ फटेहाल बच्चे
हर दहेरी पर सजे
दीयों में बचा हुआ तेल
निकाला रहे थे
और दीयों को करीने से
पोंछकर झोली में डाल रहे थे
यह दृश्य ऐसे ही
सिर्फ गरीबी को दर्शाता
पर मेरे मन में
एक सवाल आया
जलनशील दीपक भी
अपने पीछे कुछ अंश
जला नहीं पाया
और उसी से
किसी को खुशी का
एक उपकरण मिला
क्या मैं अपने खुशहाल
लम्हों से कुछ बचा हुआ
पल, इन के लिए
नहीं दे सकता
शायद यह एक अलग
बात है की,मैं इतना
जलनशील हूं कि
कुछ पल भी
अवशेष नहीं रख पाता
और यह बच्चे
यों ही दीये के तेल में
बीती रोशनाई का
आनंद खोजते रहेंगे
भोर सबेरे, उठकर देखा
कुछ फटेहाल बच्चे
हर दहेरी पर सजे
दीयों में बचा हुआ तेल
निकाला रहे थे
और दीयों को करीने से
पोंछकर झोली में डाल रहे थे
यह दृश्य ऐसे ही
सिर्फ गरीबी को दर्शाता
पर मेरे मन में
एक सवाल आया
जलनशील दीपक भी
अपने पीछे कुछ अंश
जला नहीं पाया
और उसी से
किसी को खुशी का
एक उपकरण मिला
क्या मैं अपने खुशहाल
लम्हों से कुछ बचा हुआ
पल, इन के लिए
नहीं दे सकता
शायद यह एक अलग
बात है की,मैं इतना
जलनशील हूं कि
कुछ पल भी
अवशेष नहीं रख पाता
और यह बच्चे
यों ही दीये के तेल में
बीती रोशनाई का
आनंद खोजते रहेंगे
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