किसी के रोके से मैं ना रुका होता
प्यार से जो इक बार पुकारा होता
जंहा भी निछावर करत देते हम
काश! उनको भी प्यार गवारा होता
समझ आया सच्ची दोस्ती कोई कंहा निभाया
मतलब के थे सब, मतलब मे साथ है निभाया
गिर गिर सम्हल के अब तो यह समझ पाया
फिर भी दुआ देता हूँ थोड़ी देर साथ तो निभाया
प्यार करते लोग पर फिर भी बिछड़ जाते
लाख चाहे जिन्दगी पर सब छोड़ चले जाते;
मौत ही जिन्दगी का आखिर पैगाम है बताते
इसलिये जिन्दा "दिल" ही दिलों मे रह जाते
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