Saturday, 25 July 2015



आज कलम उठी है, लिखने दो, 
बड़े जुल्म सहे हैं, अब उठने दो 
बड़ी मुश्किल से आज़ाद हुए हैं, 
मेरी माँ ये मुझसे कहती है, 
मैं कैसे जानूं की हम आज़ाद हुए है, 
मेरी रूह ये मुझसे कहती है |
मैने पूछा -
माँ तुमने कैसे जाना भारतवासी आज़ाद हुए
इतना बड़ा है भारत मेरा, कैसे सब एकसाथ हुए
माँ कहती है -
बेटा अख़बार है कहता कि हम भारतवासी आज़ाद हुए
काम वही है मेरा तेरा बस कुछ गोरों से कुछ काले आज़ाद हुए मेरी तेरी क्या हस्ती है, संसार वही मेरी बस्ती है
अब सो जाते हैं लल्ला मेरे, फिर रोज़ वही एक किश्ती है
आज कलम उठी है, लिखने दो,
बड़े जुल्म सहे हैं, अब उठने दो
कभी हैं डरते कभी सिसकते, यार जियो और जीने दो
हिंदू मुस्लिम के दंगे छोड़ बोलो, नेताओं मुझसे मेरा भारत दो
सालों पहले तुमने मुझसे, मेरा ही भारत माँगा था
भारत विकसित कर दोगे जल्दी, क्या ये खोखा वादा था
सालों बाद मुझे भारत दे दो, तुमसे ये ना हो पाएगा
जाग गया अब भारतवासी, अब आम आदमी आएगा
बैंक समझ रख दिया वतन को अपना, क्या पता
भ्रष्टाचारी और बेरोज़गारी जैसे इंटरेस्ट साथ ले आएगा
आज कलम उठी है, लिखने दो,
बड़े जुल्म सहे हैं, अब उठने दो

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