Saturday, 25 July 2015

मेरे हाथो की लकीरो मै मोहब्बत ही नहीं 
मै मोहब्बत की हसी रह पे आऊ कैसे ? 
मैंने जिस दिन मोहब्बत का सिर्फ नाम लिया 
मै परेशान हु उस दिन से उसे बताऊ कैसे ? 
मैंने हालत से लड़कर ही हर मानी 
अब मोहब्बत का ख्वाब सजाउ कैसे ?
मेरी मज़बूरी का आज भी ये आलम है
वो रुलाती है मुझे क्यों ये बताऊ कैसे ?
बातो-बातो मै एक बात तुम भी पूछोगे
वक्त कम है तुम्हे हर एक बात बताऊ कैसे ?

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