Saturday, 25 July 2015



उस गली का वह पुराना घर, 
जहॉ बचपन बीति,
जहाँ ना कोई रिवाज़ थी,
ना कोई रीति,
जहा चलती थी केवल
अपनी ही नीति,
वह गली छोड़ अब मै
एक मोहल्ले पर खड़ा हूँ ..
अपनी ही बातो को लेकर
कितनो से लड़ा हूँ
कहते हैं आगे फिर,
कोई बड़ा शहर आएगा ,
अपने साथ ढेर सारी,
चुनौतियाँ लाएगा..
पर भरोसा है मुझे खुद पर,
मै अपनी बात कहूँगा,
अब तक लड़ता आया हूँ
लड़ता रहूँगा...लड़ता रहूँगा....

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