Sunday, 25 May 2014



आज जो हो रहा है समाज मे
वो अच्छा नहीं हो रहा है
रक्षक बन गए है भक्षक
लोगो को भय हो रहा है 
नहीं पड़ी किसी की किसी को 
आदमी कितना स्वार्थी हो रहा है
नारी अस्मिता नहीं सुरक्षित 
खुलेआम चीर-हरण हो रहा है 
हो रहे बलात्कार पे बलात्कार
सिलसिला बंद नहीं हो रहा है 
आदमी, औरत के दिल में
अपनी इज्ज़त खो रहा है
बच्चो की सुरक्षा को लेकर
माँ-बाप को खौफ हो रहा है
भड़क जाता है छोटी बात पर
आदमी अपना आपा खो रहा है
धर्मगुरुओ के प्रवचन का भी
कोई असर नहीं हो रहा है
मुश्किल में है आम आदमी
महंगाई का बोझ ढो रहा है
आज भी दूर- दराज़ गांवो में
दलितो पर जुल्म हो रहा है
कर्ज़ में डूबा बेचारा किसान
मरने को मजबूर हो रहा है
बन रहा अमीर और अमीर
गरीब और गरीब हो रहा है
हाथ में है जिसके बागडौरवो
कुर्सी पर बैठा सो रहा है
धर्म-जाति के नाम पर कोई
नफरत के बीज बो रहा है
घोटाले पर घोटाले कर के
कोई देश को डुबो रहा है
घूसखोरी - जमाख़ोरी करकेकोई
मालामाल हो रहा है
जो हो रहा है समाज में
अच्छा नहीं हो रहा है

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