Wednesday, 28 May 2014




इक बूढ़े बाप ने अपने बेटे हरी को अमरीका में फ़ोन लगाया 
“बेटा बड़ा अफ़सोस है की तुम्हे ये बता रहा 
तुम्हारी मम्मी के साथ अब मैं बिलकुल नहीं रह सकता 
हमने कर लिया है इक दूसरे से डिवोर्स लेने का फैसला 
तुम्हे ये मालूम होना चाहिए इसीलिये फ़ोन किया ”
“ऐसा कैसे हो सकता. पप्पा ये मैं कतई नहीं मान सकता. 
माँ ने ऐसा किया ही क्या बताइये भी तो ज़रा, 
ये मज़ाक सा आपने सोचा भी कैसा 
और हमसे पूछे बिना ऐसा कुछ करना बिलकुल गलत है पप्पा ”
” हरी बेटा बात बहुत आगे निकल गयी है, 
अब कुछ नहीं हो सकता सिर्फ तुम्हे बताना था 
इसलिए फ़ोन कर दिया, घबराना नहीं बेटा ” 
और पापा ने आगे कुछ कहे बगैर फ़ोन बंद कर दिया .

उसी दिन कुछ समय बाद उनकी बेटी सीता का जर्मनी से फ़ोन आया 
“पप्पा मुझे आप और मम्मी से अभी अभी जरूरी बात है करना”
“बेटी मम्मी तो यहाँ है नहीं, पर सब ठीक तो है ना बेटा ” 
“ठीक कैसे पप्पा, तुम लोग डिवोर्स ले रहे हो ऐसा सुना ये मज़ाक कैसा ”
“ओ याने तुम्हे हरी ने बताया, मज़ाक नहीं, तुमने ठीक ही सुना है बेटा, 
बात बहुत आगे बढ़ गयी है जो कुछ करना था सब तो किया ”
“ ऐसे कैसे आप दोनों कर सकते हैं पप्पा, बहुत शर्म है, हमको ये कतई नहीं होने देना 
मैं और हरी पंद्रह दिन के अन्दर वहां आ रहे है तब तक कुछ मत करना ” 
और पप्पा ने दुःख से उस बेचारी का फ़ोन पर सुना बेहद सिसकना ….
“अच्छा बेटी मत घबराओ, सब ठीक होगा, तुम कहते हो तो ठहराना ही पडेगा,
पंद्रह दिन के अन्दर जरूर आना नहीं तो मुश्किल होगा और ठहराना ”

फ़ोन के बाद हरी सीता के पप्पा ने हंसकर उनकी मम्मी से कहा 
“तुम चाहती थीं ना हरी और सीता ने इस दिवाली पर यहाँ आना 
और उन्होंने कहा था बिलकुल नहीं बन पायेगा इस वर्ष ऐसा आना 
अब मैंने उन्हें समझा दिया है और दोनों का तो अब निश्चित है आना 
मुमकिन है उनके साथ तुम्हारी बहू जमाई और बच्चों का भी आना ….!

No comments:

Post a Comment