बचपन की.. वह अमीरी.. न जाने.. कहाँ खो गयी?
वरना कभी.. वारिश के पानी में..
हमारे.. भी जहाज़.. चला करते थे !
बचपन की...वह बाहदुरी.. न जाने.. कहाँ खो गयी?
वरना कभी.. छत की मुंडेर पर ..
हमारे.. भी पांव.. चला करते थे !
बचपन की...वह दिलेरी.. न जाने.. कहाँ खो गयी?
वरना कभी.. टिफीन बॉक्स में ..
हमारे.. भी निवाले.. आपस में बटते थे !
बचपन की...वह बात सारी.. न जाने.. कहाँ खो गयी?
वरना कभी.. साथी के दुःख में ..
हमारे.. भी आंसू.. अपने आप निकलते थे !
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