आज अचानक बहुत दिन बाद,मुलाकात हो गई;
मेरे खोये हुवे दिल से,काफ़ी दिन से गुमशुदा था ।
कितनी मिन्नत,कितनी फ़रियाद,खोजने की हद हो गई;पूछा हाल-चाल दिल से,
क्यों इतने अर्सेसे वह मुझ से ज़ुदा था ।
आँखों मे भर पानी,सुनाया संवाद ,प्यार की इन्तिहां हो गई;
प्यार किसी से हो गया था उसे ,
नासमझ दिल कब उसी मे खो गया था ।
जर्जर, मासुम से चहरे पर अवसाद,जीने की तमन्ना खत्म हो गई;
टूटे हुए दिल को सम्हालूँ कैसे,
"दिल्लगी" को उसने "दिल की लगी" समझा था ।
समुन्दर की रेत पर लिखा होता बरवाद,
लहरें आई और धो गई;रेत का दोष इसमे कैसे,
नदानी थी दिल की,ग़लत जगह लिखा था।
दिल को वापस लाने की थी कवायत,
अब जरूरत बड़ी हो गई ;जीने को जी लेते लोग जैसे-तैसे,
पर रेगिस्थान मे बेवकूफ़ पानी खोज रहा था ।
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