मुझे “प्रेम” पर लिखना ना आया ,
क्योंकि “प्रेम” मुझमे कहीं ना समाया ,
मैंने जब भी “प्रेम” को गले लगाया ,
उसे अधूरा ही अपने अंदर सा पाया ।
मुझे “प्रेम” पर लिखना ना आया ,
क्योंकि “प्रेम” अक्सर मैंने अपने सवालों में पाया ,
मैंने जब भी “प्रेम” को गले लगाया ,
उसे पिघलता सा अपने अंदर कहीं पाया ।
मैंने अब “प्रेम” पर लिखने का मन बनाया ,
और हर प्रेमी युगल को अपनी कलम में कहीं समाया ,
तब मेरी कलम में भी इतना “प्रेम” समाया ,
कि हर पढ़ने वाले के मन में भी “प्रेम” का अक्स था छाया ।
“प्रेम” एक एहसास है मन का ,“प्रेम” एक तृष्णा है तन की ,
“प्रेम” कुछ ख्यालों की माया ,जिसमे है पूरा विश्वास समाया ।
क्योंकि “प्रेम” मुझमे कहीं ना समाया ,
मैंने जब भी “प्रेम” को गले लगाया ,
उसे अधूरा ही अपने अंदर सा पाया ।
मुझे “प्रेम” पर लिखना ना आया ,
क्योंकि “प्रेम” अक्सर मैंने अपने सवालों में पाया ,
मैंने जब भी “प्रेम” को गले लगाया ,
उसे पिघलता सा अपने अंदर कहीं पाया ।
मैंने अब “प्रेम” पर लिखने का मन बनाया ,
और हर प्रेमी युगल को अपनी कलम में कहीं समाया ,
तब मेरी कलम में भी इतना “प्रेम” समाया ,
कि हर पढ़ने वाले के मन में भी “प्रेम” का अक्स था छाया ।
“प्रेम” एक एहसास है मन का ,“प्रेम” एक तृष्णा है तन की ,
“प्रेम” कुछ ख्यालों की माया ,जिसमे है पूरा विश्वास समाया ।
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