Saturday, 25 July 2015

मेरे हाथो की लकीरो मै मोहब्बत ही नहीं 
मै मोहब्बत की हसी रह पे आऊ कैसे ? 
मैंने जिस दिन मोहब्बत का सिर्फ नाम लिया 
मै परेशान हु उस दिन से उसे बताऊ कैसे ? 
मैंने हालत से लड़कर ही हर मानी 
अब मोहब्बत का ख्वाब सजाउ कैसे ?
मेरी मज़बूरी का आज भी ये आलम है
वो रुलाती है मुझे क्यों ये बताऊ कैसे ?
बातो-बातो मै एक बात तुम भी पूछोगे
वक्त कम है तुम्हे हर एक बात बताऊ कैसे ?

शब्द नए चुनकर गीत वही हर बार लिखूँ मैं 
उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं
विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की झंकार लिखूँ मैं
कैसे चंद लफ्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं…………..
उसकी देह का श्रृंगार लिखूँ या अपनी हथेली का अंगार लिखूँ मैं
साँसों का थमना लिखूँ या धड़कन की रफ़्तार लिखूँ मैं
जिस्मों का मिलना लिखूँ या रूहों की पुकार लिखूँ मैं
कैसे चंद लफ्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं…………..
उसके अधरों का चुंबन लिखूँ या अपने होठों का कंपन लिखूँ मैं
जुदाई का आलम लिखूँ या मदहोशी में तन मन लिखूँ मैं
बेताबी, बेचैनी, बेकरारी, बेखुदी, बेहोशी, ख़ामोशी
कैसे चंद लफ्ज़ों में इस दिल की सारी तड़पन लिखूँ मैं
इज़हार लिखूँ, इकरार लिखूँ, एतबार लिखूँ, इनकार लिखूँ मैं
कुछ नए अर्थों में पीर पुरानी हर बार लिखूँ मैं.........
इस दिल का उस दिल पर, उस दिल का किस दिल पर
कैसे चंद लफ्ज़ों में सारा अधिकार लिखूँ मैं........... 



भारतीय गांवों में आज भी बाल विवाह किये जाते है . कानून भी बने हुए हैं किन्तु यह कुप्रथा आज भी हमारे समाज में 'जस की तस ' चली आ रही है . क्यूँ माँ , बाप अपने बगीचे की नन्ही कलियों के साथ ये खिलवाड़ करते हैं . उनको क्या मिलता होगा यह सब करके . कभी सोचा कि छोटे छोटे बच्चों को शादी के बंधन में बाँध देते है . उनको मालूम भी होगा शादी क्या होती है शादी कि मायने क्या हैं ?,उनका शरीर शादी के लिए तैयार भी है ?वो नन्ही सी आयु शादी के बोझ को झेल पायेगी? 
वो मासूम बचपन , जिसमें छोटे छोटे फूल खिलते हैं ,मुस्कुराते हैं, नाचते हैं ,गाते हैं ऐसे लगते हैं मानो धरती का स्वर्ग यही हो, खुदा खुद इन में सिमट गया हो कहते हैं बचपन निछ्चल , गंगा सा पवित्र होता है तो क्यूँ ये माँ बाप ऐसे स्वर्ग को नरक कि खाई में धकेल देते हैं उनकी बाल अवस्था में शादी करके 'सोचो '
जब फुलवाड़ी में माली पौधे लगता है उनको पानी खाद देता है सींचता है वो जब बड़े होते हैं उनपे नन्ही नन्ही कलियाँ आती हैं कितनी अच्छी जब वही कलिया खिलके फूल बनती हैं तो पूरी फुलवाड़ी उनसे महक उठती है यदि वही कलियन फूल खिलने से पहले तोड़ दी जाएँ उनको पावों तले रौंद दिया जाये तो पूरी फुलवाड़ी बेजान हो जाती है ऐसे ही यह छोटे छोटे बच्चे हैं इनके बचपन को खिलने दो महकने दो जब ये शादी के मायने समझे इनका शरीर और मन , दिमाग शादी के योग्य हो ,आत्म निर्भर हो ग्रहस्थी का बोझ उठाने योग्य हो तभी इनकी शादी कि जाये |


जीओ और जीने दो, ये दो शब्द हैं किन्तु यदि देखें तो इन दो शब्दों में जिन्दगी का सार छिपा है .इन्सान, इन्सान के रूप में जन्म तो लेता है किन्तु उसके कर्म इन्सानों जैसे नहीं होते कई दफा तो वो अपने स्वार्थ खातिर इन्सानों का खून बहाने से भी नहीं चूकता .उसके कर्म जानवरों जैसे हो जाते हैं .कई बार तो इतना कूर और ज़ालिम हो जाता है कि जानवरों को भी मात दे जाता है .अपने स्वार्थवश वो अपनों का भी खून बहा देता है यदि हम यह दो शब्द, जीओ और जीने दो , अपना लें तो यह धरती स्वर्ग हो जाएगी . इन दो शब्दों का तात्पर्य है कि खुद भी जीयें औरों को भी शान्ति से उनको उनकी जिन्दगी जीने दें . क्यूँ हम लोग आज इतने स्वार्थी हो गए है कि धर्म , जाती , प्यार के नाम पे इंसानियत का खून बहा रहे हैं प्यार करने वालों को अपनी इज्ज़त कि खातिर मार देते हैं जिसे' hounor killing' का नाम दिया जाता है कभी धर्म कि खातिर लोगों को मारा जाता है कौन सा धर्म है ,कौन सा कोई धार्मिक ग्रन्थ है या कौन से कोई देवी देवता ,गुरु , साधू , संत पीर पैगंम्बर हुए हों जिन्होंने कहा हो या कहीं लिखा हो कि धर्म के नाम पे लोगों कि हत्याएं करो. या कहीं लिखा हो कि प्यार करना गुनाह है और प्यार करने वालों की बलि देदो 'hounor killing ' के नाम पे . हम क्यूँ आज इतने कूर हो गए हैं जो ऐसे घिनोने कार्य करते हैं शान्ति से क्यूँ नहीं रहते . क्या मिलता है हमें ऐसे घिनोने कार्य करके शान्ति से खुद भी रहें औरों को भी रहने दें , आज आवश्कता है इन दो शब्दों को अपनाने क़ी ' जीओ और जीने दो
पिछले कुछ समय में हमने इस समाज के दो चेहरे देखे | एक अत्यंत घिनोना, डरावना, अपराध, आतंक और दहशतगर्दी का | इसी समाज में छुपे वो चेहरे इतने घिनोने थे कि उन्हें इंसान मानना इस समाज के लिए सहज ना था | फिर चाहे वो गोवाहाटी की घटना हो या दामिनी की | चाहे वो आंतकवाद हो या नक्सलवाद | चाहे वो अपराध हो, दुष्कर्म हो या फिर व्यर्थ की बयानबाज़ी | इस तरह की घटनाएँ जब भी होती है, जहाँ कहीं होती है, इंसानियत के चीथड़े-चीथड़े कर देती है और मानवता को तार तार कर देती है |
ये लहू इंसानों का है या इसका रंग कुछ और है
आदमी के भेष में ये कौन आदमखोर है........ !
ये चेहरा था क्रिया का | और एक चेहरा था प्रतिक्रिया का | इन सब घटनाओं के अंजाम बेहद दर्दनाक थे, मगर इसके दुसरे पहलू पर गौर किया जाये तो जिस तरह की क्रिया हुई उतनी जबरजस्त प्रतिक्रिया भी हुई | जिस तरह अपार जन सैलाब इन घटनाओं के विरोध में सड़कों पर उतरा वो एक बहुत बड़े परिवर्तन की तरफ इशारा कर गया | अपराधों को चुपचाप सहन करने वाले और डर के साये में जीने वाले समाज का हमने एक नया चेहरा देखा | एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा हुआ "आखिर क्यूँ और आखिर कब तक?" अपने मुल्क को सरकारों के भरोसे छोड़ कर अपनी निजी जिंदगी में मस्त जनता की चेतना जाग्रत हुई और हमारे सब्र का बांध टूटा | नतीजे चाहे ज्यादा हमारे हक़ में ना रहे हो मगर इन विषयों पर चर्चा चौराहों तक पहुँची और हमने जवाब माँगना शुरू किया, ये अहम बात है |




विवाह या शादी हर इंसान का ख्वाब या सपना होती है और 24-25 साल के होते ही कच्चा माल "प्रोसेस्ड" होकर बाजार में बिकने आ जाता है! जितनी अच्छी नौकरी, उतने ही अच्छे दाम!!! आजकल जितना फायदा सिडबी (स्माल इंडस्ट्रीज़ डेवेलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया) द्वारा स्थापित किये गए लघु उद्योगों में नहीं होता है उतना तो आजकल विवाह बाजार में संतानों के व्यापार में हो जाता है! मुझे तो लगता है सरकार को विवाह का व्यवसायीकरण कर देना चाहिए और इसमें भी विदेशी कंपनियों को अपना हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करना चाहिए! मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि भारतीय जीवन में विद्यमान जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी सोलह संस्कारों से जुडी हर चीज़ों को बेचने के सार्वभौमिक अधिकार सरकार को वालमार्ट जैसी कंपनियों को दे देने चाहिए और साथ साथ स्विस बैंकों को भी खुश करना चाहिए!
ज़िन्दगी कभी-कभी कुछ पुराने पन्ने दुहराती है 
वो लम्हा जो शायद हुआ ही नहीं 
उन्हें दुहराया हुआ दिखाती है 
कुछ पुरानी खुशबुएँ हवा में फिर से आ जाती हैं 
जिन्दगी कभी-कभी...... 
बदलने लगता हैं अहसास हवा के रुख़ के साथ
जो शायद पहले कभी े हुआ करता था
आने लगते हैं कुछ चेहरे आँखों के सामने यूँ ही
बिन जिनके जीवन कभी अधूरा लगा करता था
जिन्दगी हर रोज एक कुरु क्षेत्र बन ही जाती है
जिन्दगी कभी कभी.....
वो बार-बार मन को मेरे, छलनी किये जाते हैं,
हम मुस्कुरा-मुस्कुरा के,बस होंठ सिये जाते हैं.
हर राह, हर कदम उन्होंने, साथ छोड़ा है मेरा,
हम मित्रों की फेहरिस्त में,उनका नाम लिए जाते हैं.
झूठ का दामन उन्होंने,थामे रखा है जकड़ कर,
फिर भी हम वफाओं की,उम्मीद किये जाते हैं.
हर बार सोचते है पलट वारकरें हम भी आज,
वो दुहाई दे दोस्ती की,हमे चुप किए जाते हैं.
वो बार-बार मन को मेरे,छलनी किये जाते हैं,
हम मुस्कुरा-मुस्कुरा के,बस होंठ सिये जाते हैं.

मिलने को बेकरार हैं , मिलकर तो देखिये । 
दो - चार कदम साथ में , चलकर तो देखिये।
आना पराये काम में देता है क्या सकूँ ,
कभी दूसरे की आग में , जलकर तो देखिये।
मिल जुल के साथ जीने में है और ही मज़ा,
इन तंग दायरों से, निकलकर तो देखिये।
रखे कोई सहेजकर , भगवान पर चढ़ो,
बनकर के फूल काँटों में , खिलकर तो देखिये।
मजबूरीयों में किस तरह कटती है ज़िंदगी,
घर में किसी गरीब के, पलकर तो देखिये।
दंगा - फसाद , झूठ से , नफरत करोगे तुम,
साँचे में कभी 'सत्य' के ढलकर तो देखिये।

देखना एक दिन तुझे भी हमसे मुहब्बत हो जाएगी.!
रात-रात भर जागेगी और ख़यालो में खो जाएगी.!!
यूँ ही शाम ढलेगी और यूँ ही दिन भी निकलेगा.!
आईना में देख सूरत अपनी खुद से शरमाएगी.!!
कई हैं ज़माना में हसीन हम तो कुछ भी नहीं हैं.!
बनाना चाहेगी हमसफर कोई सूरत मेरी नज़र आएगी.!!
गुज़रेगी मेरी गली से देखेगी जब मेरे उजड़े घर को.!
याद कर-कर हमें तन्हाई में खूब अश्क़ बहाएगी.!!
वक़्त की ठोकरें अच्छे-अच्छों को जीना सीखा देती.!
ना रहेंगे जब हम तो शायेद खुदको संभाल पाएगी!


उस गली का वह पुराना घर, 
जहॉ बचपन बीति,
जहाँ ना कोई रिवाज़ थी,
ना कोई रीति,
जहा चलती थी केवल
अपनी ही नीति,
वह गली छोड़ अब मै
एक मोहल्ले पर खड़ा हूँ ..
अपनी ही बातो को लेकर
कितनो से लड़ा हूँ
कहते हैं आगे फिर,
कोई बड़ा शहर आएगा ,
अपने साथ ढेर सारी,
चुनौतियाँ लाएगा..
पर भरोसा है मुझे खुद पर,
मै अपनी बात कहूँगा,
अब तक लड़ता आया हूँ
लड़ता रहूँगा...लड़ता रहूँगा....
सुना हे,की आज कल मेरे घर पे चप्पलो का ढेर काफी है 
चलो पता तो चला, की मेरी कविताओ का ख़ौफ़ बाकि है 
और जब जब गलियों से निकलू मै 
सन्नाटा छा जाता हे ,कोई नजर नहीं आता है 
कुत्ते भी दुबक जाते हे, पत्ते खुद से लिपट जाते हे, 
हवाए रुख बदल लेती हे, घटाए सूरज को ढ़क लेती हे,
घड़ियां भी सुन हो जाती हे , चिड़िया पतंग हो जाती हे
मंजर भूतिया हो जाता हे,
और भूत भी डर कर हनुमान चालीसा गाता हे,
और शायद उन्हें डर इस बात का हे
की कही उनकी आवाज़ों को अपनी वाह वाही ना कह दू,
उन्हें अपनी अगली कविता का शिकार न कर दू


आज कलम उठी है, लिखने दो, 
बड़े जुल्म सहे हैं, अब उठने दो 
बड़ी मुश्किल से आज़ाद हुए हैं, 
मेरी माँ ये मुझसे कहती है, 
मैं कैसे जानूं की हम आज़ाद हुए है, 
मेरी रूह ये मुझसे कहती है |
मैने पूछा -
माँ तुमने कैसे जाना भारतवासी आज़ाद हुए
इतना बड़ा है भारत मेरा, कैसे सब एकसाथ हुए
माँ कहती है -
बेटा अख़बार है कहता कि हम भारतवासी आज़ाद हुए
काम वही है मेरा तेरा बस कुछ गोरों से कुछ काले आज़ाद हुए मेरी तेरी क्या हस्ती है, संसार वही मेरी बस्ती है
अब सो जाते हैं लल्ला मेरे, फिर रोज़ वही एक किश्ती है
आज कलम उठी है, लिखने दो,
बड़े जुल्म सहे हैं, अब उठने दो
कभी हैं डरते कभी सिसकते, यार जियो और जीने दो
हिंदू मुस्लिम के दंगे छोड़ बोलो, नेताओं मुझसे मेरा भारत दो
सालों पहले तुमने मुझसे, मेरा ही भारत माँगा था
भारत विकसित कर दोगे जल्दी, क्या ये खोखा वादा था
सालों बाद मुझे भारत दे दो, तुमसे ये ना हो पाएगा
जाग गया अब भारतवासी, अब आम आदमी आएगा
बैंक समझ रख दिया वतन को अपना, क्या पता
भ्रष्टाचारी और बेरोज़गारी जैसे इंटरेस्ट साथ ले आएगा
आज कलम उठी है, लिखने दो,
बड़े जुल्म सहे हैं, अब उठने दो
कुछ कर दिखाने का जूनून रख या कुछ ना कर पाने का मलाल कर सब कुछ तेरे हाथ मे है 
ज़्यादा सोचने का समय नही ज़िन्दगी बोहोत रफ़्तार मे है.. 
मन्ज़िल का पता कर रास्ता भी निक्लेगा.. अभी तो तु कतार मे है.. 
ये मत सोच क तु न हारा तो मन्ज़िल को जल्दी देख पायेगा.. 
अर्रे वो मजा मन्ज़िल मे कहाँ जो उसके रास्ते मे है.. 

डर को खुद से दूर रख ये तुजे भटकायेगा...
तु कदम तेज़ कर ले..डर पिछे छूट जायेगा..
हाँ बोहोत दर्द होंगे तु दिल मे सम्भाले हुए..
इतना मजबूत बन क एक हँसी ही काफ़ी हो ..वो दर्द भुलाने के लिये
रोकने वालो की कमी नही पूरा ज़माना खडआ हो जायेगा..ऐसे मे बस एक ही हाथ तुजे बचाएगा वो होग तेरा खुद का.. जो तुजे खुद पर विश्वास दिलाएगा ..
अगर मन्ज़िल मिली तो सुकून मिलेगा और अभिमान बढ जायेगा..
और अगर नही मिली तो तु पेहले से भी अच्छा इन्सान बन जायेगा

Friday, 9 January 2015


Thank you, friends, for all the things
That mean so much to me--
For concern and understanding
You give abundantly.
Thanks for listening with your heart;
For cheering me when I'm blue;
For bringing out the best in me;
And just for being you.
Thanks for in-depth conversation
That stimulates my brain;
For silly times we laugh out loud;
For things I can't explain.
For looking past my flaws and faults;
For all the time you spend;
For all the kind things that you do
हर राह को मै चाहू, हर मंजिल मुझको भाती है
मेरी कोई दिशा नहीं, सिर्फ हवा मुझे बहलाती है
प्रवाह जिधर भी तेज हुआ ,ते उधर निकल लेता हु मै
मांग जिधर भी तेज हुई, ते उधर खिसक लेता हु मै 
मेरी आँखों के सपने हर पल पल पल पल बदले है
मेरे खवाबो के परिंदे ,आसमान में भटके हे
जाने की कोई राह नहीं ,बस आस लगाए बैठे हे
मन की बत्ती को बजाए ,जुगनू पे तो तरसे हे


बेबस हूँ,बेबाक हूँ,बेशर्म हूँ,बिंदास हूँ,कमजोर भी हूँ 
लेकिन बस बलवान नही! 
कभी इस घर की,कभी उस घर की,कभी इस पल की,कभी उस पल की 
मेरी अपनी कोई पहचान नही! 
जिसने चाहा वहा मोड़ दिया,रूह को मेरी झकझोर दिया,अंदर तक मुझको तोड़ दिया 
मेरी इज़्ज़त थी,कोई काँच नही!
मेरे सपने,मेरे विचार,मेरी उड़ान,मेरे लिए सिर्फ़ धरती है यहाँ,मेरा कोई आसमान नही!
मेरे लिए एक लीबाज़,एक चौखट,एक वक़्त ओर फ़र्ज़ हैं
इस शब्द आज़ादी पर मेरा कोई अधिकार नही!