कभी कभी पीड़ा के बादल बरसाने को जी करता है
कभी कभी कुछ घाव ह्रदय के सहलाने को जी करता है......।
जो अपने थे पोंछ न पाये भीगी पल्कों को पल भर भी
कभी कभी गैरो के आगे दुख गाने को जी करता है.......।
खुली आँख से भी तो हम ने अब तक ठोकर ही खाई है
कभी कभी तो पलक मूँद कर गिर जाने को जी करता है......
अधरो पर मुस्कान लिए चुप चाप कई गम पीते है
कभी कभी तो तोड़ के चुप्पी चिल्लाने को जी करता है...।
हम भी न कह पाये तुम से,और तुम भी न समझ सके
कभी कभी इस रिश्ते का सच समझाने को जी करता है....
कभी कभी पीड़ा के बादल बरसने को जी करता है
कभी कभी कुछ घाव ह्रदय के सहलाने को जी करता है......।
Beautiful ...
ReplyDeleteWho has written it ?