Wednesday, 9 July 2014



रात कटती नही , सुबह होती नहीं 
पलके नम हैं मगर , आँखे रोती नहीं 
तुमसे होके जुदा ऐ मेरे हमनशी 
चाँदनी से भी अब बात होती नहीं
देखते देखते हाय ये क्या हो गया 
बात ही बात में तू खफा हो गया 
है तुझे भी पता है मुझे भी पता
परबताने की हर बात होती नहीं
तुम भी सोंचो उधर हम भी सोंचे इधर
कश्मकश में ये दिन यूँ ही जाए गुज़र
कहना तुमको भी है कहना हमको भी है
पर किसी से भी शुरुआत होती नहीं
क्या कहें किस कदर दूरी बढती गयी
बात बढती गयी और बिगड़ती गयी
अब तो हालत हुयी अपनी ये आजकल
सपनो में भी मुलाकात होती नहीं

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