Saturday, 13 December 2014

Wo lamhe jo meri zindagi ke anmol pal ban gaye,
Wo lamhe jo mere gujre huye kal ban gaye,
Kaash in lamho ko mai phir se ji pata,
Wo lamhe jo meri nam aankho ke jal ban gaye.
Aankho me sapne aur dil me armaan liye,
ek safar me chal pade bina kisi ka saath liye,
Raaste me kuch naye chehro se mulakaat ho gayi,
Phir to wo aise dost bane jaise ek rishta ho umar bhar ke
liye.
Wo lamhe jo mujhe chahne wale mere dost de gaye,
Wo lamhe jo na bhula pane waale kuch log de gaye.
Is safar ki shuruaat hamne saath ki thi,
Jaan se pyare yaaro ke saath kitni saari baat ki thi,
Zindagi ke un palo ko bhi hamne saath jiya tha,
Jin palo ne khushi aur gam dono se mulakaat ki thi.
Wo lamhe jo ab laut ke nahi aa sakte,
Wo lamhe jaha hum chaah ke bhi nahi ja sakte.
Apne yaaro ke dil ki baat hum bina kahe jaan lete the,
Kaun pasand hai kisko ye thode se jhagde ke baad hum
maan lete the,
Canteen aur cafe ki partiya to roz hua karti thi,
Kubsurat ladkiyo ko call kar, na jaane kitne naam liya
karte the.
Wo lamhe jo ek dhundhali yaad ban gaye,
Wo lamhe jo ek yaadgar kitab ban gaye.
Ajeeb the ye lamhe jisme hum hase bhi aur roye bhi,
Ajeeb the ye lamhe jisme kuch paye bhi aur kuch khoye bhi.
Maa sae payara koi bol ho nhi sakta 
Maa ki mamta ka koi mol ho nhi sakta 
( sakhat raste mein bhi aasan safar lagta hai 
Ye mujhe maa ki duao ki asar lagta h 
Ek muddat sae meri maa nhi soyi jab 
Mainae ek bar kha tha ki maa mujhe dar lagta h )
Chot jab bache ko lagti h to maa roti h
Asi mohbaat kisi aur rishty mein kha hoti h 
Kuch baate bhuli hui,
kuch pal beete hue,
Har galti ka ek naya bahana,
aur fir sabki nazar me aana,
Exam ki puri raat jagna,
fir bhi sawal dekhke sar khujana,
Mauka mile to class bunk marna,
fir doston k sath canteen jana
USKI ek jhalak dekhane roj college
jana,
usko dekhte dekhte attendance bhul
jana,
Har pal hai naya sapna,
aaj jo tute fir bhi hai apna,
Ye college ke din,
In lamho me jindagi jee bhar ke
jeena,
ये दिवाली, वो दिवाली
घर में खुशियाँ, लाये दिवाली !
बम चकरी, और फूलझरी
सब से ये, बजवाये दिवाली !!
सबको पास, बुलाये दिवाली
अपनों को, मिलवाये दिवाली !
लड्डू मिशरी, और मिठाई
सबको ये, खिलवाये दिवाली !!
पटाखें छीनना, सिखाये दिवाली
पापा से डाँट, खिलाये दिवाली !
पटाखों की आवाज, सुनाये दिवाली
कान सुन्न कर जाये, हर दिवाली !!
हसते हसते, रुलाये दिवाली
घर कि याद, दिलाये दिवाली !
जैसा चाहो, वैसा बनेगी
अच्छी या, बूरी दिवाली !!
खुशियाँ मनाए, हाथ बटाए
सबसे अच्छी, उनकी दिवाली !
ताश जुआ, और जुआरी
इस से बुरी क्या, होगी दिवाली !!
सबको सन्देश, भिजवाये दिवाली
रुठे को मनाये, ये दिवाली !
शान्ति से मनाओ, ये दिवाली
वरना हाथ, जलाये दिवाली !!
रोना छोड़ मनाओ, ये दिवाली
सबको मुबारक, ये दिवाली !
आयुष्मान दुआ, पूरी की पूरी
है दिल से, इस दिवाली !!
दीवाली की रात के बाद 
भोर सबेरे, उठकर देखा
कुछ फटेहाल बच्चे 
हर दहेरी पर सजे
दीयों में बचा हुआ तेल 
निकाला रहे थे
और दीयों को करीने से
पोंछकर झोली में डाल रहे थे
यह दृश्य ऐसे ही
सिर्फ गरीबी को दर्शाता
पर मेरे मन में
एक सवाल आया
जलनशील दीपक भी
अपने पीछे कुछ अंश
जला नहीं पाया
और उसी से
किसी को खुशी का
एक उपकरण मिला
क्या मैं अपने खुशहाल
लम्हों से कुछ बचा हुआ
पल, इन के लिए
नहीं दे सकता
शायद यह एक अलग
बात है की,मैं इतना
जलनशील हूं कि
कुछ पल भी
अवशेष नहीं रख पाता
और यह बच्चे
यों ही दीये के तेल में
बीती रोशनाई का
आनंद खोजते रहेंगे
यह कैसी दिल्ली है भाई,
हमको समझ नहीं आई,
पहाड़ गंज में पहाड़ नहीं,
धुला कुआँ में कुआँ नही
,दरियागंज में दरिया नही
इन्द्रलोक में परियां नहीं,
गुलाबी बाग में गुलाबी नही
चांदनी चौक में चांदनी नही
पुरानी दिल्ली में नई सड़क,
नई दिल्ली में पुराना किला
कश्मीरी गेट में कश्मीर नही
अजमेरी गेट में अजमेर नहीं,
यह कैसी दिल्ली है भाई,
हमको समझ नहीं आई
पिता का स्नेह
प्यार का सागर ले आते
फिर चाहे कुछ न कह पाते
बिन बोले ही समझ जाते
दुःख के हर कोने में
खड़ा उनको पहले से पाया
छोटी सी उंगली पकड़कर
चलना उन्होंने सीखाया
जीवन के हर पहलु को
अपने अनुभव से बताया
हर उलझन को उन्होंने
अपना दुःख समझ सुलझाया
दूर रहकर भी हमेशा
प्यार उन्होंने हम पर बरसाया
एक छोटी सी आहट से
मेरा साया पहचाना
मेरी हर सिसकियों में
अपनी आँखों को भिगोया
आशिर्वाद उनका हमेशा हमने पाया
हर ख़ुशी को मेरी पहले उन्होंने जाना
असमंजस के पलों में
अपना विश्वाश दिलाया
उनके इस विश्वास को
अपना आत्म विश्वास बनाया
ऐसे पिता के प्यार से
बड़ा कोई प्यार न पाया
सिस्टम की खराबियों पर, कर तो रहे हो तुम चर्चा
मत भूलो इस जन्म भूमि का तुम पर बड़ा है कर्जा
संवारो इसे, निखारो इसे
अरे देश के नौजवानों तुम अब संभालो इसे
कितना भ्रष्टाचार है, गरीबी की भरमार है
बेरोजगारी की चपेट में, हर कोई लाचार है
पर देश के युवाओं तुम्हारी शिकायतों का ही पहाड़ है
यह भारत है तुम्हारा, नकारात्मकता की छाया से बचा लो इसे
हिन्दुस्तान में रहकर, इसी की मिटटी में चल कर
हिन्दी से कतराकर, जिम्मेदारी से पला झाड़कर
विदेशियों की नकल करके, स्वदेश को भुलाकर
अब बद से बदतर तो न बनाओ इसे
विदेशों की तुम करो पूजा, उनके ही गाओ गीत
चलो उनके ही नक्शेकदम पर , उनसे ही ले लो सीख
रखो अपने वतन का मान मन में,
नजरों में सबके उंचा बनाओ इसे
हर चीज मांगते हो, देना भी कभी तो चाहो
अधिकारों का ढोल पीटते हो, अपने कर्तव्य भी निभाओ
हो तुम भारत के, यही सच है न झुठलाओ इसे---------
हमारी छोटी सी नादानी,
कुछ नादान बच्चो के किस्मत की क़ुरबानी है ,
कभी उनकी मुट्ठी खुलवाकर देखना ,
किस्मत के नाम पर छाले मिलेंगे, छाले ! ,
जो उन पर हुए हर एक ज़ुल्म की निशानी है,
सबने देखा होगा,
जब हम कही घूमने निकलते हैं,
ये बच्चे कहीं रोड पर खड़े तो कहीं ,
कचड़े पर पड़े मिलते हैं.
शिक्षा, पोषण और संतुलित प्यार ,
बस यही तो हैं एक जीवित बच्चे का
मुलभुत अधिकार ,
पर मिल नहीं पता क्युंकि,
सारा माहौल कानूनी हैं,
सियासत भी तो तब आँख खोलती हैं,
जब खड़ी हो चुकी होती परेशानी हैं,
ये हमारी नादानी,
उन नादान बच्चो के किस्मत की क़ुरबानी हैं....
मैं हूँ--
कि मेरी जिन्दगी----
बँटी है कई भागों में----
कई राहों में-----
मुख्तलिफ है हर सफर----- 
और मुख्तसर है जिन्दगी।
मैं लिखता हूँ----
लिखते रहना चाहता हूँ----
मेरी रचनाएँ छपे या ना छपे----
कोई अच्छा कहे या ना कहे-----
मैं तो बस अपनी भावनाओं को----
कलम से उकेरना चाहता हूँ।
किसी रोज़ याद न कर पाऊँ तो खुदग़रज़
ना समझ
लेना दोस्तों
दरअसल छोटी सी इस उम्र मे परेशानियां बहुत
हैं...!!
: मैं भूला नहीं हूँ किसी को...
मेरे बहुत कम दोस्त है ज़माने में .........
बस थोड़ी जिंदगी उलझी पड़ी है .....
2 वक़्त की रोटी कमाने में। ..

फिर एक बार दरवाजे पर इश्क़ को खड़ा पाया बड़ी मासूमियत से दिल में जगह मांगने आया दिल ने झलाते हुए कहा कि आशियाना बहुत हुआ बसाकर तुम्हें दिल में हरबार धोखा मैंने खाया

Tuesday, 30 September 2014


कोशिशें जारी हैं तुम्हारे बिना जीने कीं, 



पर अभी भी रातों को आँखों में नींद नही है।
हर रात भीगते तकिये बता रहे हैं सच
कि दिल में हर पल बढता प्यार वही है।
छोड़ आये हैं तुमसे जुड़ी हर याद मीलों दूर,
पर हर आवाज़ में सुनाई देता नाम वही है।
सारे जतन कर लिए तुम्हे भुलाने के ,
सालों बाद भी हालात अभी बदले नहीं है।
जीना चाहते हैं बस अपने ही लिए
पर अपनापन जो पूरा करे वो साथ अब नही है।
शिकवा नही है कि तुम छोड़ कर गए
तुम्हे जाने कि इजाजत देने वाले जो हम ही हैं।
फिर भी क्यों नहीं जाते तुम मेरे दिलोदिमाग से
हर दम मन में उठता सवाल आज भी वही है।

पितृ पक्ष के विसर्जन की अब होने लगी तैयारियां हर तरफ है, 
उदासी की काली घटाओं के जाने का वक्त बस नज़दीक ही आ गया है
हो रहा हर ओर नवरात्री के आगमन का इंतज़ार है,
मंदिरों में भी हर ओर श्रृंगार की चल रही तैयारियां है ,
मिट जायेगा अँधेरा अब उजाले का हर किसी को इंतज़ार है , 
द्वार पर लगा कर बंदनवार माँ का करना अब स्वागत है ,
सुन्दर कलश को सजा फूलों से माँ का करना अब श्रंगार है ,
माँ की मूरत को चुनरी चढ़ा अब करना उनका पूर्ण श्रृंगार है ,
लाल गुड़हल के फूलों को माँ के क़दमों में चढ़ाना है ,
मेवा और मिष्ठान से माँ का भोग भी लगाना है
माँ के नौ रूपों का पूजन अब हमको करना है ,
उनके क़दमों से घर को करना है अब पावन ,
मुश्किलो को माँ के सहारे छोड़ अब रोज कीर्तन करना है ,
कन्या पूजन संग माँ को विदा भी करना है,
आ रही है नवरात्रि सब छोड़ माँ के आगमन का स्वागत करना है ॥


किसी के रोके से मैं ना रुका होता
प्यार से जो इक बार पुकारा होता
जंहा भी निछावर करत देते हम
काश! उनको भी प्यार गवारा होता
समझ आया सच्ची दोस्ती कोई कंहा निभाया 
मतलब के थे सब, मतलब मे साथ है निभाया
गिर गिर सम्हल के अब तो यह समझ पाया
फिर भी दुआ देता हूँ थोड़ी देर साथ तो निभाया
प्यार करते लोग पर फिर भी बिछड़ जाते
लाख चाहे जिन्दगी पर सब छोड़ चले जाते;
मौत ही जिन्दगी का आखिर पैगाम है बताते
इसलिये जिन्दा "दिल" ही दिलों मे रह जाते
ने ही हक मे लड़ना भी दुश्वार है कितना? 
हर आदमीं अपने मे ही लाचार है कितना?
अपनों को रौंद देता है खुद अपने पैर से...
इंसान का इंसान गुनाहगार है कितना?
मशरूफ है जो जश्न मे, अपनों को गम मे छोड़... 
वो शक्श उन के प्यार का हक़दार है कितना?
सोचा नहीं के दूँ ख़ुशी तौहफे मे गैर को...
अपने लिए खुशियों का तलबगार है कितना?
करता रहा ता उम्र जो इमां की दलाली...
खुद की नज़र मे ही वो शर्मशार है कितना?
करना सका जो अपने वतन से ही मुहब्बत... 
उस बुत का खुदा-ऐ-वफ़ा बेकार है कितना?

Tuesday, 5 August 2014



हर कोई दौड़ रहा है
बस, दौड़ रहा है 
कोई दौलत की खातिर, 
कोई शौहरत की खातिर, 
कोई मोहब्बत की खातिर दौड़ रहा है...।
कोई दुकान के लिए 
कोई मकान के लिए 
कोई सामान के लिए दौड़ रहा है...। 
कोई नौकरी पाने के लिए 
कोई छोकरी पाने के लिए 
कोई कुर्सी पाने के लिए दौड़ रहा है...।
कोई फैशन के चक्कर में
कोई टशन के चक्कर में
कोई राशन के चक्कर में दौड़ रहा है...।
कोई शराब की चाहत में
कोई शबाब की चाहत में
कोई कबाब की चाहत में दौड़ रहा है...।
कोई जीतने की हौड़ में
कोई हराने की हौड़ में
कोई गिराने की हौड़ में दौड़ रहा है...।
कोई नोट की लालच में
कोई वोट की लालच में
कोई टिकट की लालच में दौड़ रहा है...।
कोई धर्म के नाम पर
कोई जाति के नाम पर
कोई प्रांत के नाम पर दौड़ रहा है...।
कोई नकल कर के
कोई बिना अकल के
कोई पीछे शकल के दौड़ रहा है...।
बस, दौड़ रहा है
हर कोई दौड़ रहा है.........

हमने देखा,तुमने देखा.............।
सड़क किनारे के ढाबे पर झूठे बर्तन धोता बचपन
पढ़ने लिखने की उम्र सहीपर ईटे,पत्थर ढोता बचपन......।
न खेल खिलौनो की चाहत न कुछ बनने की अभिलाषा
बस दो वक़्त की रोटी कोजूतो मे सुई चुभोता बचपन.............।
चौराहो पर फूल बेचताकभी गाड़िया चमकाता 
बस मे आइसक्रीम बेचनेदूर तलक दौड़ा जाता
कोने मे थक कर बैठा ,अपनी किस्मत पर रोता बचपन..............।
बबलू, घर-घर अखबार बांटताराजू ,चाय बनाता
मुन्नी झाड़ू पोछा करतीगुड्डू मालिक के पाव दबाता
फिर भी रोज गालिया खाता,आसू से नैन भिगोता बचपन.......।
बहुत बने कानून पर भूख न रोकी जाए
कुछ पैसो की खातिरबचपन बूढा होता जाए
ऐसी हालत देख के लगता,काश!कभी न होता बचपन.......।
हमने देखा,तुमने देखा.............।
सड़क किनारे के ढाबे पर झूठे बर्तन धोता बचपन
पढ़ने लिखने उम्र सहीपर ईटे,पत्थर ढोता बचपन......।
मेरे दो दो भारत,एक गोरा एक काला। 
एक आकाश छूने वाला ,
और दूसरा गड़बड़-घोटाला। 
एक भारत तो है ,स्वदेश की शान।
दूसरे भारत मे ,लोग बहुत हैं परेशान। 
एक भारत मे हैं,मल्टीप्लेक्स और मॉल। 
दूसरे मे झुग्गी-झोपड़ी ,और लोग हैं कंगाल।
एक भारत खाता है,ईमान की रोटी। दू
सरा चूसता है ,बोटी -बोटी। 
एक भारत है ,मजबूत व ताकतवर। 
दूसरे भारत मे,छाया है डर ही डर।
एक भारत है,मानवता का उदाहरण।
दूसरे मे आगजनी,लूटमार व अपहरण।
एक भारत का है ,अंतर्राष्ट्रीय स्तर।
दूसरे मे जीवन का,निम्नतम स्तर ।
एक भारत मे मानऔर संयम पलता है।
दूसरे भारत मे,"सब कुछ " चलता है।
एक भारत देता है,आज़ादी को सलामी।
दूसरे भारत मे,अब तक है गुलामी।

तेरी हर बात पर हम ऐतबार करते रहे
तुम हमें छलते रहे,हम तुमसे प्यार करते रहे ।
कोशिशें करते तो मंज़िल ज़रूर मिल जातीं 
मगर अफ़सोस तुम वायदे हज़ार करते रहे । 
नाम उनको भी मेरा याद तलक नहीं आया 
जिनकी हस्ती हम ख़ुद मे शुमार करते रहे । 
मुझको मालूम था तुम नहीं आओगे फिर भी 
ज़िंदा उम्मीद लिये हम इन्तिज़ार करते रहे । 
ज़िन्दगी यूँ तो गुज़र रही है पहले की तरह 
पर ज़ख़्म पिछले कुछ ज़ीस्त ख्वार करते रहे ।
ईद मुबारक़ आप को मेरे दोस्तो.!
खुशियाँ मुबारक़ सब को दोस्तो.!!
बड़े-छोटे रिश्ते-नातो को मिलाती.!
ईद इंसान को इंसान है बनाती.!!
भाईचारे अमन का पैगाम है देती.!
ज़िंदगी को नया आयाम है देती.!!
ऊँच-नीच की दीवारो को ना देखे.!
खुदा की दर सबको बराबर करदे.!!
आओ हमसब मिलकर ईद मनालें.!
भाई को अपने गले-जी से लगालें.!!


माँ सिखलादे बचपन की भाषा में तुतलाकर बात करूँ
नन्हे क़दमों से दौडू आंगन में फिर हांफहांफ कर साँस भरूं
माँ आज सजा मुझको नेहलाकर,तू फिर लगा एक काली बिंदिया
हाय लगे न तेरे लाल को तू खोल वही काजल की डिबिया
माँ आंसू अब कम ही आते है सीख लिया है जीवन जीना
पर बचपन के आँसू मीठे थे रोने को था तेरा सीना
क्या अश्रू की बूंदे मठर नैनो में ही घुल जाएँगी 
या फिर इनको प्यार मिलेगा ये तेरा आँचल पाएंगी
माँकहते है मूर्ख लोग ये बेटा अब जवान हो गया
मुझे पता है मेरी पीड़ा मेने तो बचपन को खो दिया।।


मित्रो , 
आज सुबह एक घटना घटी अजीब .
पहली बार एक अमीर पर भारी पड़ा गरीब ,
गरीब जो अपनी रेहरी हांक रहा था , 
रोटी की तलाश में इधर उधर झाँक रहा था ,
एक बड़ी गाडी वाले के आगे आ गया , 
बस यहीं वो मात खा गया ,
गाडी वाला जोर से चिल्लाया , 
पैसे के गरूर में इतराया , 
बोला "गाडी से क्या मेरी टकराएगा , 
चल हट पीछे नहीं तो मारा जाएगा" ,
रेहरी वाला पहले तो घबराया ,
किन्तु बिन बोले रह नहीं पाया ,
बोला ,हम लाचार ही तो अक्सर दबाये जाते है ,
और हमारे पैसे स्विस बैंक में छिपाए जाते है ,
हमारी मेहनत से ही आपके महल बनाये जाते है,
किन्तु हमारे झोपड़ें अक्सर तुड्वाए जाते है ,
बाबूजी आप समझदार होकर कैसी बातें करते हो ,
मुझ गरीब के संग क्यों मज़ाक करते हो ,"
जिसे मार दिया इस महंगाई से उसे तुम कैसे मार सकते हो ,
उसे तुम कैसे मार सकते हो "!!!!............"
अच्छा है कलम उठा ही नहीं रहा हूँ |
उठाके क्या करूँगा ? 
जो कुछ सताए, बयां कर दूंगा |
भ्रष्ट नेताओं के बारे में लिखूंगा,
दिल दहलाती वारदातों के बारे में लिखूंगा,
जान लेती महंगाई,खोयी हुई पुरवाई,
आतंक का आना जाना,
सरकार का नया बहाना,
बिगड़ी हुई नीयत,नष्ट हुई इंसानियत,
भूखे रोते बच्चे-बूढ़े,
कोई पत्थरदिल न मुड़े,
लुटानेवालों की एकता
और गहरी नींद में जनता,
चुबनेवाली हर बात,
कठोर लफ़्जों में बतला दूंगा,
खो दूंगा अपनी ही नींद,
और मासूम जहन को जला दूंगा |
उससे तो अच्छा है,
इस एहसास को दरवाजे खोलू ही नहीं,
थामे कलम से बोलू ही नहीं !
निकले कब के हैं हम सब अपने -अपने घरों से ,
अपनों से ही दूर हो जाने का दर्द तो है । 
वही अपने खुश है आज हमे हमारे पैरों पर खड़ा देख कर ,
उनके शान से उठते सिरों का गर्व भी तो है । 
चहकते फिरते थे यार दोस्तों के साथ 
उनका साथ छूट जाने का दुख तो है ।
पर इस नयी दुनिया में जिन चेहरो ने साथ निभाया ,
इस सफर में उनके मिल जाने का फक्र भी तो है।
कामयाबी के सफर का एक ऐसा पड़ाव ,
जिस पर आने कि खुशी तो है ।
कई मुकाम जो हम पीछे छोड़ आए है,
उन्हे बिसरा देने का गम भी तो है ।
कैसे जिये इस तन्हा जिंदगी को अपने दम पे ,
कुछ महीनो के इस सफर ने हमें सिखाया तो है ।
हर अच्छी बुरी बात को कैसे रोके खुद पर हावी होने से ,
आप लोगो ने प्यार से हमें बहुत समझाया भी तो है।
हमारी मासूमियत को जो न समझ पाये ,
उन्हे अपना समझने का छलावा तो है ।
पर अच्छे लोगो के साथ हमेशा अच्छा होता है ,
आप सब दोस्तों ने हर बार ये भरोसा दिलाया भी तो है ।
अंत में तहे दिल से शुक्रिया आप लोगो का ,
आखिर आपने अपना बनाकर गले लगाया जो है ।
दोस्तों ....सदैव आभार आप सभी के विश्वास का ,
जिसने हर बार गिरकर उठने पर हौसला बढ़ाया जो है ।

Monday, 14 July 2014




"प्यार" ही जिन्दगी का शायद सही फ़लसफ़ा है ;
जो हर एक " जिंदादिल" जिन्दगी में बसता है ;
वैसे चाहे, कोई अकेला भी जीने को, जी लेता है !
वीराने मे खिले- गुलबहार,वह कोई खिलना है ?
किसी के दिल में पनाह पाये,यह हमारी आरजू है ;
किसी के होंटों की मुस्कुराहट बने यह अरमान है ;
हम ना रहे, पर हमे याद मे रहने की चाहत है !
फरियाद करेंगे वह किस से, जब दिल टूटता है ,
कहते जो हमारे लिये उनके पास वक़्त नहीं है ;
खोजेंगे हमे,वक़त आने पर,यह हमारा वादा है !
मोजुदगी नहीं, होने का एहसास ही खास है ;
दिल की नजर से देखिये, हम आपके पास है |


मेरा दिल ये घर तेरा है तुझको ही ये ख़बर नहीं है
?कभी नहीं भूला मैं तुझको याद तेरी आती रहती है……..!
दिल तरसता है तुझे मिलने सनम दिन रात ये,
फिर भी कहता है, न मै तुझसे मिलूँ …..!
पा के गर मुझको तू अपने पास फिर,
रूठकर, तडपोगी, तब मै क्या करूं …….! .
दिल तरसता है, तुझे मिलने सनम…..!
हो गयी मुझसे तुझे अनबन, जो नफ़रत बन गयी,
प्यार का मुझको मिला ईनाम, ये कैसा सही,
जिसको इतना चाहा, दिल से, जान से,
उसने ही ठुकरा दिया हमको,न कुछ हम कह सके………!
.दिल तरसता है, तुझे मिलने सनम…..!
दिल तरसता है तुझे मिलने सनम,
दिन रात ये,फिर भी कहता है न मै तुझसे मिलूँ,
और समझ में आ रहा भी कुछ नही,
ना मिलूँ तो जिन्दगी मै क्या करूं ……. !
दिल तरसता है तुझे मिलने सनम……!

ज्यादा नहीं है आमदनी ,ऊपर से टैक्स का भार 
आसान नहीं है नौकरी ,चलता नहीं है कारोबार 
महंगाई ने नींद उड़ाई ,भ्रष्टाचार ने छीना चैन 
मै हूं कॉमन मैन, मै हूं कॉमन मैन..........।
बार बार बढ़ जाते हैं डीजल पेट्रोल के दाम 
अब तो रसोई गॅस पर भी लग गई है लगाम 
बढ़ती हुई महंगाई है भ्रष्टाचार की देन
मै हूं कॉमन मैन, मै हूं कॉमन मैन..........।
होता नहीं काम किसी एजेंट के बिना 
दाखिला नहीं होता डोनेशन के बिना
स्कूल की ऊंची फीस ने कर दिया है बेचैन
मै हूं कॉमन मैन, मै हूं कॉमन मैन..........।
मकान नही खरीद सकते लोन के बगैर
ऊपर से होता है ब्लॅक व्हाइट का चक्कर
सोच सोच कर गरम हो जाता है ब्रेन
मै हूं कॉमन मैन, मै हूं कॉमन मैन..........।
हर चीज़ मे मिलावट ,पेकेट मे कम मात्रा
हर जगह है खतरा,सुरक्षित नहीं है यात्रा
खतरे से खाली नहीं बस हो या ट्रेन
मै हूं कॉमन मैन, मै हूं कॉमन मैन..........।
लम्बी-लम्बी कतारें ,बड़ा बुरा है हाल
बसे भरीं ,ट्रेन भरीं हैं ,भरे हैं अस्पताल
आबादी यूं ही बढ़ती रही तब क्या होगा मैन
मै हूं कॉमन मैन, मै हूं कॉमन मैन..........।
बात-बात पे पंगा ,होता रहता है दंगा
हर काम मे लगता है कोई न कोई अड़ंगा
ऐसी हालत देख कर ,भर आए मेरे नैन
मै हूं कॉमन मैन, मै हूं कॉमन मैन..........।

Wednesday, 9 July 2014

अचानक मे टकरा गया मेरे ही कॉलेज की लड़की से
वह आरही थी मे जा रहा था 
दोनों अपनी अपनी सोच मे थे टकरा गये
उसने मुझे देखा मैंने उसको एक ही नज़र मे प्यार हो गया 
मैंने उसकी किताबे उठाई उसने मेरी 
फिर बात का सिलसिला शुरू हुआ 
कैंटीन मे चाय पीते पीते खतम हुआ 
एक दूसरे का नाम भी पूछा मोबाइल नंबर भी लिया 
पता ठिकाना भी पूछा वह रोजाना टेम्पो से कॉलेज आती थी 
मैंने कहा मे तो उस रास्ते से ही आता हु 
तुम्हें आते समय लेता आऊँगा जाते समय पहुचा दूंगा
लड़की खुशी खुशी मन गई आग दोनों तरफ बराबर की थी
हर शाम के प्रोग्राम बनने लगे
रात मे दोनों मोबाइल से बाते करते रहते
पढ़ाई लिखाई तो गई भाड़ मे
ऐसे करते करेते कितना समय गुजर गया मालूम ही नहीं पड़ा
इतने मे माँ की आवाज आई
क्या आज कॉलेज नहीं जाना है क्या
सूरज को उगे तीन घंटा हो गया
ले चाय पीले और फटाफट तैयार हो जा
अब मेरे समझ मे आया जो देखा था वह सपना था
पर था बड़ा ही मनोरंजक



बेटे को ब्याह कर बहू को लाते समय क्यो नहीं आंते आँसू
अपनी लड़की को बिदा करते वक़्त कहाँ से आजाते है आँसू
बहू को चाहे बेटी जैसी समझ लेवे प्यार चाहे जितना भी देवे
पर उसके मनमे टीस उठती है माँ बाप याद आते ही है
भाई बहन भी याद आते है सहेलियो की कमी महसूस होती है
वैसे ही अपनी लड़की की हालत होती है
यह एक वास्तब क्रूर सत्य है लड़की पराया धन होती है
चाहे जितना बड़ा भी आदमी क्यो ना हो
लड़की को बिदा करनी ही पड़ती है
तब क्यो करे पशतावा जिसकी लड़की लाये है
जिनको लड़की दी है देनेवाले लेनेवाले दोनों कीहालत एक जैसी है
दोनों के आँसुओ का स्वाद एक जैसा है -नमकीन है
फिर क्यो नहीं करे ईश्वर से हाथ जोड़कर प्रार्थना हे
भगवान दोनों को रखना खुशहाल जैसे दोनों ही सदा सुखी रहे |









यूँ तो बेवजह तारीफ़ मैं करता नही, 
पर आज ये शायर दिल मजबूर है, 
आज तक नही किया नशा जिसने, 
आज तेरे हुस्न के नशे में चूर है। 
चंचल सी,मद्धम सी ये धूप जैसे, 
फ़िसल रही हो तेरे खुले बाहों से, 
तेरा स्पर्श करने को आतुर हूँ, 
पर हाथों से नही,निगाहों से। 
दबी हुई हसरत है की मेरी नज़र, 
तेरा आँचल बन तुझसे लिपट जाये, 
या तेरे दीदार की प्यासी निगाहें,
तेरा अरमान बन तेरे दिल में सिमट जाये।
मेरे होंठ तेरे लबो पे सज जाये,
पर तेरी ही कविता के बोल बनके,
और समाये तेरी साँसे मेरी साँसो में,
फ़कत एक एहसास अनमोल बनके।
तेरे चेहरे की चमक ये जैसे,
मेरी रातों को रोशन करती है,
ख्वाबों के तहखाने में आने को,
जो तू यादों की सीढ़ियाँ उतरती है।
मुझमे तू है और तुझमे मैं हूँ,
इस हकीकत से अब मैं अंजान नही,
खूबसूरती की इस ज्योत के बिना,
इस सजल अस्तित्व की पूर्ण पहचान नही।
मेरे चारोँ ओर जितने हैँ लोग ,
सबको लगा है प्यार का रोग ।
हर पल वो करते हैँ बात ,
कभी दुसरी तो कभी तीसरी के साथ ।
इनकी मस्ती देख मैँ थक चुका हुँ ,
इस अकेले पन से पक चुका हुँ ।
इस कुवाँरे पन का The End चाहिए ,
मुझको भी एक Girl Friend चाहिए ।
Mobile मेँ मेरी Free Tariff हो ,
और Girl Friend मेरी बहुत शरीफ़ हो ।
मुझ से ही प्यार वो करती रहे ,
हर दम मुझपे मरती रहे ।
महर पल रहे वो मेरे साथ ,
कभी ना छोड़े मेरा हाथ ।
जुड़ी रहे उससे मेरी Life ,
और वही बस बने मेरी Wife ।
मुझे ही बनना उसका Husband चाहिए ,
मुझको भी एक Girl Friend चाहिए ।